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Kanya bhrunhtya poem

   जन्म से पहले ।


उड़ना था मुझे भी इस खुले गगन में ,

पर  काट दिए पंख मेरे जन्म से पहले ।


करनी थी सेवा मुझे भी अपने देश की ,

पर छिनली वर्दी मेरी जन्म से पहले । 


करने थे सपने पूरे मुझे भी अपने ,

पर  दफनाया अपनोने ही जन्म से पहले।


बनना था मुझे भी माँ-बाबा कि लाड़ली ,

पर छिनली उम्मीदे सारी जन्म से पहले ।


बेटी तो होती हैं सौभाग्य का प्रतिक ,

पर बनी अभागन में जन्म से पहले ।


अगर बेटी होना गुनाह होता ,

तो शिकायत हैं हर माँ से मुझे ,

क्या वो किसी की बेटी नहीं थी ?


सोच कर ही भर आई आँखे मेरी ,

पर आँखे कहा खुली थी जन्म से पहले ।


  • लत्ता बारैया

 Thank you .


【Based on કન્યા ભ્રુણહત્યા】

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