Hello readers, today I want to give a review of the hindi poem "Mere Kavi Dost". This is the realistic poem written by Ramneek Singh and performed by Navazuddin Siddiqui and Ramneek singh both on the platform Unerase Poetry. This is a satirical poem upon the system and the harsh reality of society and people. When I read the title of the poem I thought that maybe it's a poem about two friends. But when I heard the poem I understood that it's a poem which can do the work of awakening people. It's a poem about what is the role of poetry in our society. Through poetry great things happen.
If we think about poetry, as a student of literature we have to analyze the poem critically. Others are seeing poetry as a one tool of entertainment but it's a different thing for literature students to see any poem and see the meaning of the poem that is hidden.
In this poem the poet wants to wake up us and tell us to question the system which is not doing the work which is our basic right. So we have to ask questions about this system. If we don't ask questions today, we won't be able to answer it tomorrow. The thing is that we have to question whenever we see injustice. Not only for ourselves but also for them who won't able to speak for themselves. And also we have to support them.
In the poem we can see that the poet tells us about a farmer. Farmers face lots of problems in their life but they never stopped raising food. They think about others, if their childrens are committed suicide despite they providing food. Their dwindle Abdomen and rich people's increasing abdomen's motion are equal nowdays. This is like poors are becoming more poor and rich people are becoming more rich. We see racism still in our society. And when something happened, leaders of the big comunity haven't at all noticed all these things. They even don't care about them. This is the time we have to ask questions to government and duces. In past when government investing money in temple and statues we didn't ask them that there is what need of all that stuff ? The necessary things are health and education. But we didn't ask question ! So now in corona pandemic the importance of hospital we can understand, but we can't give answers to the situation. So we have to make aware to government and ask them question on their steps which is taken for us.
With the use of the language of poetry poets are able to spread awareness. This is one attempt among them. So here is the full poem...
मेरे कवि दोस्त ।
-Ramneek Singh
मेरे कवि दोस्त वक़्त आ गया है
कि कविता मंडलियों और जत्थों से
आज़ाद होकर बीच सड़क पर धरना दे
तुम्हारी कविता मेरे कवि दोस्त
अपने महबूब से मिलने उससे बिछड़ने
उसके जाने पर खाली हुए मकान की
कहानी कह-कह कर थक गयी है
देश मूल्यों से खाली हो रहा है
ओछेपन ने नैतिकता को रद्दी
के भाव बेच दिया है
पत्रकारों को रंडी की औलाद कहना
हो गया है हर बहस का
आखिरी जवाब
किसान के घटते और बिल्डर
के बढ़ते पेट की गति समान हो गयी है
अनाज खिलाने वाला गोली खा रहा है
हमारी सड़कों पर छितरा
उसके पैर की छालों से निकला खून
हमारे शहर के माथे पर कलंक है
अपने बच्चों को लटकता देख भी
वो हमारे बच्चों के लिए
अन्न उगाना नहीं करेगा बंद
हमारी ख़ुदगर्ज़ी ने छोड़े होंगे
हमारे अंदर इंसानियत के कुछ अंश
तो हम पूछेंगे सवाल
नहीं खाएंगे खाना
जब हम पढ़ेंगे उनकी आत्महत्याओं के बारे में
आज़ाद हिंदुस्तान के सीवेज पाइप में
दम घुटकर मरता दलित
नफ़रत का दुकानें, धर्मों की लड़ाई में
आहुति देतीं निर्दोष बच्चियां
बन कर रह गयी हैं राजनीति का सस्ता औज़ार
पर नेताओ के बड़े से बंगले के बाहर,
बडे से गार्डन के आगे लगे
बड़े से गेट के आगे बिछी
लंबीसी पेवमेन्ट पर पड़ा
सूखा पत्ता तक नहीं हिलता
और उसके टट्टू हर सवाल के आगे विकास का भोपू इतनी जोर से बजाते हैं के आधे लोग बहरे हो जाते है
और बचे हुए सवाल खुद भूल जाते हैं
ये कैसा दौर है,
चारो तरफ है भीड़,
दिशाहीन, विचारहीन, उग्र
हाथो मे लिए चाकू, पथ्थर, मशाल
काटने, तोड़ने, जलाने घर
और दबाने आवाज
आवाज जो पूछती है सवाल
जो मंत्रीजी का चैन छीन लेती है
उसके संप्रदायिक जुबान पर चारों पहर पर देती है चौकस पहरा
मेरे कवि दोस्त तंत्र को फिर से कराना होगा अपना परिचय
लोगों से, लोगों द्वारा, लोगों के लिए
एक बार मेरे कवि दोस्त
मिलकर एक ही कविता का पाठ करते हैं
और चिपका देते हैं उस कविता को टाइम बम्ब की तरह हर उस किले के बाहर जिसके अंदर बैठा नेता नीतियां बनाता है
के कैसे खरीदे जाए सारे अखबार,
घास के भाव बिल्डरों को कैसे बेचे जाए जंगल
कत्ल हीन पत्रकार को कैसे घोषित किये जायें नक्सली
वख्त आ गया है
कि कविता राजा की चोकीदार न होकर सच की पहरेदार बने
वख्त आ गया है कि कविता पन्नो से आजाद होकर लाइब्रेरी के शेल्फोंसे गिर कर लड़खड़ाती हुई दीवारे फांदती हुई बीच सड़क पर आकर धरना दे
वख्त आ गया है मेरे कवि दोस्त
वख्त निकल रहा है
अगर आज सवाल नहीं पूछे तो कल जवाब नही दे पाएंगे
मेरे कवि दोस्त वख्त आ गया है
वख्त आ गया है मेरे कवि दोस्त ।
Here is the video of the poem also, if you want to listen the poem.
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Happy reading 😊
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